शीतकाल के लिए बंद हुए बद्रीनाथ धाम के कपाट..
योग बद्री मंदिर पांडुकेश्वर के लिए किया उत्सव डोलियों ने प्रस्थान..
उत्तराखंड: श्रद्धालुओं के जय बद्रीविशाल के उदघोष के साथ रविवार को बद्रीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। आज सोमवार सुबह रावल, धर्माधिकारी, वेदपाठी और बद्रीनाथ के हक-हकूकधारियों के साथ उद्धव व कुबेर की उत्सव डोली और आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी पांडुकेश्वर के योग बद्री मंदिर के लिए प्रस्थान किया। मंगलवार को आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी ज्योतिर्मठ स्थित नृसिंह मंदिर के लिए प्रस्थान करेगी। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से पूर्व मंदिर परिसर में महिला मंगल दल बामणी और पांडुकेश्वर की महिलाओं ने लोकगीत व नृत्य की शानदार प्रस्तुतियां दी। महिलाओं ने मांगल गीत भी गाए। इस दौरान सेना व श्रद्धालुओं की ओर से जगह-जगह भंडारे का आयोजन भी किया गया।
कपाट बंद होने के मौके पर धाम में पहुंचे लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं ने बद्रीनाथ के दर्शन किए। कपाट बंद होने के बाद बद्रीनाथ धाम जय बद्रीविशाल के उद्घोष से गूंज उठा। बद्रीनाथ मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया।रविवार को दिनभर बद्रीनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुला रहा। पूर्व की भांति सुबह साढ़े चार बजे बद्रीनाथ की अभिषेक पूजा शुरू हुई। बद्रीनाथ का तुलसी और हिमालयी फूलों से श्रृंगार किया गया। अपराह्न छह बजकर 45 मिनट पर बद्रीनाथ की सायंकालीन पूजा शुरू हुई।
देर शाम सात बजकर 45 मिनट पर रावल (मुख्य पुजारी) अमरनाथ नंबूदरी ने स्त्री वेष धारण कर लक्ष्मी माता को बद्रीनाथ मंदिर में प्रवेश कराया। बदरीश पंचायत (बद्रीनाथ गर्भगृह) में सभी देवताओं की पूजा अर्चना व आरती के बाद उद्धव जी व कुबेर जी की प्रतिमा को गर्भगृह से बाहर लाया गया।रात आठ बजकर 10 मिनट पर शयन आरती हुई। उसके बाद कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हुई। रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट व अमित बंदोलिया ने कपाट बंद करने की प्रक्रिया पूरी की।रात सवा आठ बजे माणा गांव की कन्याओं द्वारा तैयार घृत कंबल बद्रीनाथ भगवान को ओढ़ाया गया और अखंड ज्योति जलाकर रात ठीक नौ बजकर सात मिनट पर भगवान बद्रीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।